Sunday, March 19, 2017

राग सूची

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किसी भी राग के विषय में जानकारी के लिये अथवा राग की बन्दिशें सुनने के लिये कृपया राग के नाम पर क्लिक करें।
केदार


















































































































राग शंकरा

स्वर       -   आरोह में रिषभ व मध्यम वर्ज्य। अवरोह में मध्यम वर्ज्य। शेष शुद्ध स्वर। (अवरोह में धैवत अल्प)
जाति     -    औढव - षाढव वक्र
थाट     -    बिलावल
वादी/संवादी   -  गंधार/निषाद
समय     -   रात्री का द्वितीय प्रहर
विश्रांति स्थान  - सा; ; ; नि; - नि; ; ; सा;
मुख्य अंग  -  ग प नि ध सा' नि ; ध प ग प ; प रे ग रे सा ;
आरोह-अवरोह  -   सा ग प नि ध सा' - सा' नि प ग ; प ध प ग ; प ग रे सा;

विशेष - राग शंकरा की प्रकृति उत्साहपूर्ण, स्पष्ट तथा प्रखर है। यह राग वीर रस से परिपूर्ण है। यह एक उत्तरांग प्रधान राग है। इसका स्वर विस्तार मध्य सप्तक के उत्तरांग व तार सप्तक में किया जाता है।

इस राग में गंधार के साथ रिषभ (रेग) का तथा पंचम के साथ गंधार (गप) का कण स्वर के रूप में काफी प्रयोग किया जाता है। इस राग में रिषभ और धैवत पर न्यास नही किया जाता। इसके अवरोह में धैवत सीधा ना लेते हुए ग प नि ध सा' नि इस प्रकार वक्र रूप में लिया जाता है। इसमें पंचम से षडज तथा गंधार से षडज पर मींड द्वारा आते हैं जैसे - प ग सा; ग सा। सपाट तानों का ताना बाना बुनने में आरोह में तीन स्वर रे, , ध वर्ज्य किये जाते हैं और अवरोह में धैवत व मध्यम वर्ज्य किया जाता है यथा नि सा ग प नि सा'; सा' नि प ग रे सा ,नि सा। यह स्वर संगतियाँ राग शंकरा का रूप दर्शाती हैं -


,नि ,नि ,नि सा ; ,,नि ,प सा ; ,,नि ,ध सा ; ,नि ,नि सा ; ,,नि सा ग ; ग प ग ; सा ग प ग ; पध पप ग ; प ग ; ग रेसा ; ,नि सा ग ग प ; प नि ध सा' नि ; नि प ; ग प नि नि सा' ; सा' रे'सा' नि ; नि ध सा' नि प ग ; प ग रे सा;

राग शंकरा वर  आधारित फिल्मी गीत Download
प्रा. विशाल कोरडे मार्गदर्शन

राग जौनपूरी

स्वर          -  आरोह में गंधार वर्ज्य। गंधार, धैवत व निषाद कोमल। शेष शुद्ध स्वर।
जाति          -  षाढव - संपूर्ण
थाट           -  आसावरी
वादी/संवादी  -  धैवत/गंधार
समय          -   दिन का दूसरा प्रहर
विश्रांति स्थान -   रे; ; ध१; सा'; - ध१; ; ग१; रे;
मुख्य अंग     -    रे म प ; ध१ म प सा' ; रे' नि१ ध१ प ; म प नि१ ध१ प ; ध१ म प ग१ रे म प ;
आरोह-अवरोह -    सा रे म प ध१ नि१ सा' - सा' नि१ ध१ प म ग१ रे सा;

विशेष - राग जौनपुरी दिन के रागों में अति मधुर व विशाल स्वर संयोजन वाला सर्वप्रिय राग है। रे रे म म प - यह स्वर अधिक प्रयोग में आते हैं और जौनपुरी का वातावरण एकदम सामने आता है। वैसे ही ध म प ग१ - इन स्वरों को मींड के साथ लिया जाता है। इस राग में धैवत तथा गंधार इन स्वरों को आंदोलित करके लेने से राग का माधुर्य और भी बढता है।

इस राग के पूर्वांग में सारंग तथा उत्तरांग में आसावरी का संयोग दृष्टिगोचर होता है। राग जौनपुरी व राग आसावरी के स्वर समान हैं। इन दोनों रागों में आरोह में निषाद स्वर के प्रयोग से इन्हें अलग किया जाता है। आसावरी के आरोह में निषाद वर्ज्य है तथा जौनपुरी के आरोह में निषाद स्वर लिया जाता है।

यह राग उत्तरांग प्रधान है। इसका विस्तार मध्य और तार सप्तक में किया जाता है। यह गंभीर प्रकृति का राग है। इसमें भक्ति और श्रंगार रस की अनुभूति होती है। यह स्वर संगतियाँ राग जौनपुरी का रूप दर्शाती हैं -


सा ,नि१ ,नि१ सा ; रे रे सा ; रे रे म म प ; प प ; प ध१ ध१ प ; ध१ प ध१ म प ; रे रे म म प ; म प नि१ ध१ प ; म प ध१ नि१ सा' ; रे म प ध१ म प सा'; सा' रे' रे' सा' ; रे' रे' नि१ नि१ सा' ; रे नि१ सा रे नि१ ध१ प ; ध१ म प ग१ रे सा रे म प ; ध१ म प सा' ;

प्रा. विशाल कोरडे मार्गदर्शन

राग बृंदावनी सारंग

स्वर     -   गंधार व धैवत वर्ज्य। निषाद दोनों। शेष शुद्ध स्वर।
जाति         -  औढव - औढव
थाट          -  काफी
वादी/संवादी - रिषभ/पंचम
समय       -    मध्यान्ह
विश्रांति स्थान -  सा; रे; ; नि; - सा'; ; रे;
मुख्य अंग -  रे म ; प रे ; म रे ,नि सा ; म प ,नि१ प म रे ,नि सा ;
आरोह-अवरोह -  सा रे म प नि सा' - सा' नि१ प म रे सा ;

विशेष - राग सारंग को राग बृंदावनी सारंग भी कहा जाता है। यह एक अत्यंत मधुर व लोकप्रिय राग है। इस राग में रे-प, म-नि, नि१-प, म-रे की स्वर संगतियाँ राग वाचक तथा चित्ताकर्षक हैं। इस राग के पूर्वार्ध में प रे म रे और उत्तरार्ध में नि१ प म रे यह स्वर समुदाय बहुतायत से लिये जाते हैं। रे म प नि ; नि नि सा' ; नि१ प म रे सा - यह संगति रागरूप दर्शक और वातावरण परक है। इसके सम प्रकृति राग सूर मल्हार, मेघ मल्हार हैं।

सारंग के कई अन्य प्रकार भी प्रचिलित हैं जैसे - शुद्ध सारंग, मियाँ की सारंग, मधुमाद सारंग आदि। यह स्वर संगतियाँ राग बृंदावनी सारंग का रूप दर्शाती हैं -

,नि सा रे ; रे म रे ; सा ,नि सा ; सा रे म प ; प रे ; म रे नि१ प ; म प नि नि सा' ; सा' नि१ प नि१ प ; म रे ; प म रे ; ,नि सा ; ,नि सा रे सा ;


प्रा. विशाल कोरडे मार्गदर्शन

Friday, March 17, 2017

हमको मनक्ती देना



हमको मन की शक्ती देना श्रद्धा विश्वास की भक्ती देना
                हे ईश्वर तुम हमको अपने चरणोमे सदा रखना  ।। धृ ।।

               सपने हमारे जगादे मनमे नई रोशनी दीखादे जग
               आगे आगे बढते जाएगे हम  ।। १ ।।

               ऑधिया गिर आए तुफान भी आए न घबराये न कतराएे
               ऎसी शक्ती ताकत पाऐगे हम ।। २ ।।

               शिक्षा का सागर बहेगा जगमे अशीक्षाका अंधियारा भागे नभमे
               ऐसा वरदान तो पाऐगे हम  ।। ३ ।।


                                                                   गीत व संगीत : आर डी कसलीकर


                             

दीप जल रहे


दिप जल रहे बने सितारे आज हमारे अंबर में
दिप जल रहे हृदय हृदय में भारत  भारत भूमी के मंदिर में  ।। धृ ।। 


                 युग युग के सब कलह पुराने अब मिट्टी में जाने दो 

                 नव यौवन की नदी तरंगे नये जोश से गाणे दो  ।। १ ।।


                  आज मृत्यूका झंडा उतारा नव यौवन की जीत हुई 

                  काल रात्रिका गया अंधेरा उठी गगनमे उषा नई ।। २ ।।


                  नव भारत का गुलशन बहरा फुल खिले है कंकण में 

                  दिप जल रहे हृदय हृदय में भारत  भारत भूमी के मंदिर में  ।। ३। ।

                                                                                           गीत : वसंत बापट
                                                                                        संगीत : राजश्री नेरुळकर 


                                             








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Sunday, March 19, 2017

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राग शंकरा

स्वर       -   आरोह में रिषभ व मध्यम वर्ज्य। अवरोह में मध्यम वर्ज्य। शेष शुद्ध स्वर। (अवरोह में धैवत अल्प)
जाति     -    औढव - षाढव वक्र
थाट     -    बिलावल
वादी/संवादी   -  गंधार/निषाद
समय     -   रात्री का द्वितीय प्रहर
विश्रांति स्थान  - सा; ; ; नि; - नि; ; ; सा;
मुख्य अंग  -  ग प नि ध सा' नि ; ध प ग प ; प रे ग रे सा ;
आरोह-अवरोह  -   सा ग प नि ध सा' - सा' नि प ग ; प ध प ग ; प ग रे सा;

विशेष - राग शंकरा की प्रकृति उत्साहपूर्ण, स्पष्ट तथा प्रखर है। यह राग वीर रस से परिपूर्ण है। यह एक उत्तरांग प्रधान राग है। इसका स्वर विस्तार मध्य सप्तक के उत्तरांग व तार सप्तक में किया जाता है।

इस राग में गंधार के साथ रिषभ (रेग) का तथा पंचम के साथ गंधार (गप) का कण स्वर के रूप में काफी प्रयोग किया जाता है। इस राग में रिषभ और धैवत पर न्यास नही किया जाता। इसके अवरोह में धैवत सीधा ना लेते हुए ग प नि ध सा' नि इस प्रकार वक्र रूप में लिया जाता है। इसमें पंचम से षडज तथा गंधार से षडज पर मींड द्वारा आते हैं जैसे - प ग सा; ग सा। सपाट तानों का ताना बाना बुनने में आरोह में तीन स्वर रे, , ध वर्ज्य किये जाते हैं और अवरोह में धैवत व मध्यम वर्ज्य किया जाता है यथा नि सा ग प नि सा'; सा' नि प ग रे सा ,नि सा। यह स्वर संगतियाँ राग शंकरा का रूप दर्शाती हैं -


,नि ,नि ,नि सा ; ,,नि ,प सा ; ,,नि ,ध सा ; ,नि ,नि सा ; ,,नि सा ग ; ग प ग ; सा ग प ग ; पध पप ग ; प ग ; ग रेसा ; ,नि सा ग ग प ; प नि ध सा' नि ; नि प ; ग प नि नि सा' ; सा' रे'सा' नि ; नि ध सा' नि प ग ; प ग रे सा;

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राग जौनपूरी

स्वर          -  आरोह में गंधार वर्ज्य। गंधार, धैवत व निषाद कोमल। शेष शुद्ध स्वर।
जाति          -  षाढव - संपूर्ण
थाट           -  आसावरी
वादी/संवादी  -  धैवत/गंधार
समय          -   दिन का दूसरा प्रहर
विश्रांति स्थान -   रे; ; ध१; सा'; - ध१; ; ग१; रे;
मुख्य अंग     -    रे म प ; ध१ म प सा' ; रे' नि१ ध१ प ; म प नि१ ध१ प ; ध१ म प ग१ रे म प ;
आरोह-अवरोह -    सा रे म प ध१ नि१ सा' - सा' नि१ ध१ प म ग१ रे सा;

विशेष - राग जौनपुरी दिन के रागों में अति मधुर व विशाल स्वर संयोजन वाला सर्वप्रिय राग है। रे रे म म प - यह स्वर अधिक प्रयोग में आते हैं और जौनपुरी का वातावरण एकदम सामने आता है। वैसे ही ध म प ग१ - इन स्वरों को मींड के साथ लिया जाता है। इस राग में धैवत तथा गंधार इन स्वरों को आंदोलित करके लेने से राग का माधुर्य और भी बढता है।

इस राग के पूर्वांग में सारंग तथा उत्तरांग में आसावरी का संयोग दृष्टिगोचर होता है। राग जौनपुरी व राग आसावरी के स्वर समान हैं। इन दोनों रागों में आरोह में निषाद स्वर के प्रयोग से इन्हें अलग किया जाता है। आसावरी के आरोह में निषाद वर्ज्य है तथा जौनपुरी के आरोह में निषाद स्वर लिया जाता है।

यह राग उत्तरांग प्रधान है। इसका विस्तार मध्य और तार सप्तक में किया जाता है। यह गंभीर प्रकृति का राग है। इसमें भक्ति और श्रंगार रस की अनुभूति होती है। यह स्वर संगतियाँ राग जौनपुरी का रूप दर्शाती हैं -


सा ,नि१ ,नि१ सा ; रे रे सा ; रे रे म म प ; प प ; प ध१ ध१ प ; ध१ प ध१ म प ; रे रे म म प ; म प नि१ ध१ प ; म प ध१ नि१ सा' ; रे म प ध१ म प सा'; सा' रे' रे' सा' ; रे' रे' नि१ नि१ सा' ; रे नि१ सा रे नि१ ध१ प ; ध१ म प ग१ रे सा रे म प ; ध१ म प सा' ;

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राग बृंदावनी सारंग

स्वर     -   गंधार व धैवत वर्ज्य। निषाद दोनों। शेष शुद्ध स्वर।
जाति         -  औढव - औढव
थाट          -  काफी
वादी/संवादी - रिषभ/पंचम
समय       -    मध्यान्ह
विश्रांति स्थान -  सा; रे; ; नि; - सा'; ; रे;
मुख्य अंग -  रे म ; प रे ; म रे ,नि सा ; म प ,नि१ प म रे ,नि सा ;
आरोह-अवरोह -  सा रे म प नि सा' - सा' नि१ प म रे सा ;

विशेष - राग सारंग को राग बृंदावनी सारंग भी कहा जाता है। यह एक अत्यंत मधुर व लोकप्रिय राग है। इस राग में रे-प, म-नि, नि१-प, म-रे की स्वर संगतियाँ राग वाचक तथा चित्ताकर्षक हैं। इस राग के पूर्वार्ध में प रे म रे और उत्तरार्ध में नि१ प म रे यह स्वर समुदाय बहुतायत से लिये जाते हैं। रे म प नि ; नि नि सा' ; नि१ प म रे सा - यह संगति रागरूप दर्शक और वातावरण परक है। इसके सम प्रकृति राग सूर मल्हार, मेघ मल्हार हैं।

सारंग के कई अन्य प्रकार भी प्रचिलित हैं जैसे - शुद्ध सारंग, मियाँ की सारंग, मधुमाद सारंग आदि। यह स्वर संगतियाँ राग बृंदावनी सारंग का रूप दर्शाती हैं -

,नि सा रे ; रे म रे ; सा ,नि सा ; सा रे म प ; प रे ; म रे नि१ प ; म प नि नि सा' ; सा' नि१ प नि१ प ; म रे ; प म रे ; ,नि सा ; ,नि सा रे सा ;


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Friday, March 17, 2017

हमको मनक्ती देना



हमको मन की शक्ती देना श्रद्धा विश्वास की भक्ती देना
                हे ईश्वर तुम हमको अपने चरणोमे सदा रखना  ।। धृ ।।

               सपने हमारे जगादे मनमे नई रोशनी दीखादे जग
               आगे आगे बढते जाएगे हम  ।। १ ।।

               ऑधिया गिर आए तुफान भी आए न घबराये न कतराएे
               ऎसी शक्ती ताकत पाऐगे हम ।। २ ।।

               शिक्षा का सागर बहेगा जगमे अशीक्षाका अंधियारा भागे नभमे
               ऐसा वरदान तो पाऐगे हम  ।। ३ ।।


                                                                   गीत व संगीत : आर डी कसलीकर


                             

दीप जल रहे


दिप जल रहे बने सितारे आज हमारे अंबर में
दिप जल रहे हृदय हृदय में भारत  भारत भूमी के मंदिर में  ।। धृ ।। 


                 युग युग के सब कलह पुराने अब मिट्टी में जाने दो 

                 नव यौवन की नदी तरंगे नये जोश से गाणे दो  ।। १ ।।


                  आज मृत्यूका झंडा उतारा नव यौवन की जीत हुई 

                  काल रात्रिका गया अंधेरा उठी गगनमे उषा नई ।। २ ।।


                  नव भारत का गुलशन बहरा फुल खिले है कंकण में 

                  दिप जल रहे हृदय हृदय में भारत  भारत भूमी के मंदिर में  ।। ३। ।

                                                                                           गीत : वसंत बापट
                                                                                        संगीत : राजश्री नेरुळकर