Tuesday, April 11, 2017

ishala

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iShala

Rated 3.50704 (142)

Description

iShala is an Android/iOS app that can be used as a tabla machine, a lehra player and/or an electronic tanpura. These are small machines that provide rhythmic/melodic accompaniment to peoplepracticing Indian music, or just jamming on any other musical style.

Featured instruments are Tabla, Harmonium, Swarmandal and Tanpura. You can select to play one or all of them, and they will automatically synchronize together (apart from Tanpura/Swarmandal that aremeant to follow their own cycle).

Includes 37 rhythmic cycles, melodies in more than 80 ragas and 7 different tempos; possible combinations are thus nothing short of endless!

                               
             
                                                                                 






                                                                 

Sunday, April 2, 2017

अच्छे बच्चे


   
 

अच्छे बच्चे बनकर तुम सब पढना लिखना सीख लो
राह सत्य की अपनाकर तुम आगे बढना सीख लो ॥ धृ ॥

        प्रखर धूप से इस जीवन में छाँव के दिन भी आते हैं
        दर्द के रिश्ते भी यहाँ मरहम फिर बन जाते हैं
        रिश्ते नातों का सम्मान तुम भी करना सीख लो
        राह सत्यकी ॥

       चाहे कितनी भी मुश्किलें हो मंज़िल को तो पाना है
       काँटोपर चलना पडे तो बने फूल मुस्काना है
       जीने की इस राह पर तुम खुशी बाँटना सीख लो
       राह सत्यकी ॥

       इस जिंदगी के मेले मे सबको इक दिन खोना है
       खोके हमको कुछ है पाना गिरके फिर संभलना है
       भेद भाव को दूर करो सबको अपनाना सीख लो
       राह सत्यकी  ॥ ३
                       
                                गीत :- एकनाथ आव्हाड
                              संगीत :- श्रीम. सोनल गणवीर       



Sunday, March 19, 2017

राग सूची

राग सूची
किसी भी राग के विषय में जानकारी के लिये अथवा राग की बन्दिशें सुनने के लिये कृपया राग के नाम पर क्लिक करें।
केदार


















































































































राग शंकरा

स्वर       -   आरोह में रिषभ व मध्यम वर्ज्य। अवरोह में मध्यम वर्ज्य। शेष शुद्ध स्वर। (अवरोह में धैवत अल्प)
जाति     -    औढव - षाढव वक्र
थाट     -    बिलावल
वादी/संवादी   -  गंधार/निषाद
समय     -   रात्री का द्वितीय प्रहर
विश्रांति स्थान  - सा; ; ; नि; - नि; ; ; सा;
मुख्य अंग  -  ग प नि ध सा' नि ; ध प ग प ; प रे ग रे सा ;
आरोह-अवरोह  -   सा ग प नि ध सा' - सा' नि प ग ; प ध प ग ; प ग रे सा;

विशेष - राग शंकरा की प्रकृति उत्साहपूर्ण, स्पष्ट तथा प्रखर है। यह राग वीर रस से परिपूर्ण है। यह एक उत्तरांग प्रधान राग है। इसका स्वर विस्तार मध्य सप्तक के उत्तरांग व तार सप्तक में किया जाता है।

इस राग में गंधार के साथ रिषभ (रेग) का तथा पंचम के साथ गंधार (गप) का कण स्वर के रूप में काफी प्रयोग किया जाता है। इस राग में रिषभ और धैवत पर न्यास नही किया जाता। इसके अवरोह में धैवत सीधा ना लेते हुए ग प नि ध सा' नि इस प्रकार वक्र रूप में लिया जाता है। इसमें पंचम से षडज तथा गंधार से षडज पर मींड द्वारा आते हैं जैसे - प ग सा; ग सा। सपाट तानों का ताना बाना बुनने में आरोह में तीन स्वर रे, , ध वर्ज्य किये जाते हैं और अवरोह में धैवत व मध्यम वर्ज्य किया जाता है यथा नि सा ग प नि सा'; सा' नि प ग रे सा ,नि सा। यह स्वर संगतियाँ राग शंकरा का रूप दर्शाती हैं -


,नि ,नि ,नि सा ; ,,नि ,प सा ; ,,नि ,ध सा ; ,नि ,नि सा ; ,,नि सा ग ; ग प ग ; सा ग प ग ; पध पप ग ; प ग ; ग रेसा ; ,नि सा ग ग प ; प नि ध सा' नि ; नि प ; ग प नि नि सा' ; सा' रे'सा' नि ; नि ध सा' नि प ग ; प ग रे सा;

राग शंकरा वर  आधारित फिल्मी गीत Download
प्रा. विशाल कोरडे मार्गदर्शन

राग जौनपूरी

स्वर          -  आरोह में गंधार वर्ज्य। गंधार, धैवत व निषाद कोमल। शेष शुद्ध स्वर।
जाति          -  षाढव - संपूर्ण
थाट           -  आसावरी
वादी/संवादी  -  धैवत/गंधार
समय          -   दिन का दूसरा प्रहर
विश्रांति स्थान -   रे; ; ध१; सा'; - ध१; ; ग१; रे;
मुख्य अंग     -    रे म प ; ध१ म प सा' ; रे' नि१ ध१ प ; म प नि१ ध१ प ; ध१ म प ग१ रे म प ;
आरोह-अवरोह -    सा रे म प ध१ नि१ सा' - सा' नि१ ध१ प म ग१ रे सा;

विशेष - राग जौनपुरी दिन के रागों में अति मधुर व विशाल स्वर संयोजन वाला सर्वप्रिय राग है। रे रे म म प - यह स्वर अधिक प्रयोग में आते हैं और जौनपुरी का वातावरण एकदम सामने आता है। वैसे ही ध म प ग१ - इन स्वरों को मींड के साथ लिया जाता है। इस राग में धैवत तथा गंधार इन स्वरों को आंदोलित करके लेने से राग का माधुर्य और भी बढता है।

इस राग के पूर्वांग में सारंग तथा उत्तरांग में आसावरी का संयोग दृष्टिगोचर होता है। राग जौनपुरी व राग आसावरी के स्वर समान हैं। इन दोनों रागों में आरोह में निषाद स्वर के प्रयोग से इन्हें अलग किया जाता है। आसावरी के आरोह में निषाद वर्ज्य है तथा जौनपुरी के आरोह में निषाद स्वर लिया जाता है।

यह राग उत्तरांग प्रधान है। इसका विस्तार मध्य और तार सप्तक में किया जाता है। यह गंभीर प्रकृति का राग है। इसमें भक्ति और श्रंगार रस की अनुभूति होती है। यह स्वर संगतियाँ राग जौनपुरी का रूप दर्शाती हैं -


सा ,नि१ ,नि१ सा ; रे रे सा ; रे रे म म प ; प प ; प ध१ ध१ प ; ध१ प ध१ म प ; रे रे म म प ; म प नि१ ध१ प ; म प ध१ नि१ सा' ; रे म प ध१ म प सा'; सा' रे' रे' सा' ; रे' रे' नि१ नि१ सा' ; रे नि१ सा रे नि१ ध१ प ; ध१ म प ग१ रे सा रे म प ; ध१ म प सा' ;

प्रा. विशाल कोरडे मार्गदर्शन

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Featured instruments are Tabla, Harmonium, Swarmandal and Tanpura. You can select to play one or all of them, and they will automatically synchronize together (apart from Tanpura/Swarmandal that aremeant to follow their own cycle).

Includes 37 rhythmic cycles, melodies in more than 80 ragas and 7 different tempos; possible combinations are thus nothing short of endless!

                               
             
                                                                                 






                                                                 

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अच्छे बच्चे


   
 

अच्छे बच्चे बनकर तुम सब पढना लिखना सीख लो
राह सत्य की अपनाकर तुम आगे बढना सीख लो ॥ धृ ॥

        प्रखर धूप से इस जीवन में छाँव के दिन भी आते हैं
        दर्द के रिश्ते भी यहाँ मरहम फिर बन जाते हैं
        रिश्ते नातों का सम्मान तुम भी करना सीख लो
        राह सत्यकी ॥

       चाहे कितनी भी मुश्किलें हो मंज़िल को तो पाना है
       काँटोपर चलना पडे तो बने फूल मुस्काना है
       जीने की इस राह पर तुम खुशी बाँटना सीख लो
       राह सत्यकी ॥

       इस जिंदगी के मेले मे सबको इक दिन खोना है
       खोके हमको कुछ है पाना गिरके फिर संभलना है
       भेद भाव को दूर करो सबको अपनाना सीख लो
       राह सत्यकी  ॥ ३
                       
                                गीत :- एकनाथ आव्हाड
                              संगीत :- श्रीम. सोनल गणवीर       



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स्वर       -   आरोह में रिषभ व मध्यम वर्ज्य। अवरोह में मध्यम वर्ज्य। शेष शुद्ध स्वर। (अवरोह में धैवत अल्प)
जाति     -    औढव - षाढव वक्र
थाट     -    बिलावल
वादी/संवादी   -  गंधार/निषाद
समय     -   रात्री का द्वितीय प्रहर
विश्रांति स्थान  - सा; ; ; नि; - नि; ; ; सा;
मुख्य अंग  -  ग प नि ध सा' नि ; ध प ग प ; प रे ग रे सा ;
आरोह-अवरोह  -   सा ग प नि ध सा' - सा' नि प ग ; प ध प ग ; प ग रे सा;

विशेष - राग शंकरा की प्रकृति उत्साहपूर्ण, स्पष्ट तथा प्रखर है। यह राग वीर रस से परिपूर्ण है। यह एक उत्तरांग प्रधान राग है। इसका स्वर विस्तार मध्य सप्तक के उत्तरांग व तार सप्तक में किया जाता है।

इस राग में गंधार के साथ रिषभ (रेग) का तथा पंचम के साथ गंधार (गप) का कण स्वर के रूप में काफी प्रयोग किया जाता है। इस राग में रिषभ और धैवत पर न्यास नही किया जाता। इसके अवरोह में धैवत सीधा ना लेते हुए ग प नि ध सा' नि इस प्रकार वक्र रूप में लिया जाता है। इसमें पंचम से षडज तथा गंधार से षडज पर मींड द्वारा आते हैं जैसे - प ग सा; ग सा। सपाट तानों का ताना बाना बुनने में आरोह में तीन स्वर रे, , ध वर्ज्य किये जाते हैं और अवरोह में धैवत व मध्यम वर्ज्य किया जाता है यथा नि सा ग प नि सा'; सा' नि प ग रे सा ,नि सा। यह स्वर संगतियाँ राग शंकरा का रूप दर्शाती हैं -


,नि ,नि ,नि सा ; ,,नि ,प सा ; ,,नि ,ध सा ; ,नि ,नि सा ; ,,नि सा ग ; ग प ग ; सा ग प ग ; पध पप ग ; प ग ; ग रेसा ; ,नि सा ग ग प ; प नि ध सा' नि ; नि प ; ग प नि नि सा' ; सा' रे'सा' नि ; नि ध सा' नि प ग ; प ग रे सा;

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राग जौनपूरी

स्वर          -  आरोह में गंधार वर्ज्य। गंधार, धैवत व निषाद कोमल। शेष शुद्ध स्वर।
जाति          -  षाढव - संपूर्ण
थाट           -  आसावरी
वादी/संवादी  -  धैवत/गंधार
समय          -   दिन का दूसरा प्रहर
विश्रांति स्थान -   रे; ; ध१; सा'; - ध१; ; ग१; रे;
मुख्य अंग     -    रे म प ; ध१ म प सा' ; रे' नि१ ध१ प ; म प नि१ ध१ प ; ध१ म प ग१ रे म प ;
आरोह-अवरोह -    सा रे म प ध१ नि१ सा' - सा' नि१ ध१ प म ग१ रे सा;

विशेष - राग जौनपुरी दिन के रागों में अति मधुर व विशाल स्वर संयोजन वाला सर्वप्रिय राग है। रे रे म म प - यह स्वर अधिक प्रयोग में आते हैं और जौनपुरी का वातावरण एकदम सामने आता है। वैसे ही ध म प ग१ - इन स्वरों को मींड के साथ लिया जाता है। इस राग में धैवत तथा गंधार इन स्वरों को आंदोलित करके लेने से राग का माधुर्य और भी बढता है।

इस राग के पूर्वांग में सारंग तथा उत्तरांग में आसावरी का संयोग दृष्टिगोचर होता है। राग जौनपुरी व राग आसावरी के स्वर समान हैं। इन दोनों रागों में आरोह में निषाद स्वर के प्रयोग से इन्हें अलग किया जाता है। आसावरी के आरोह में निषाद वर्ज्य है तथा जौनपुरी के आरोह में निषाद स्वर लिया जाता है।

यह राग उत्तरांग प्रधान है। इसका विस्तार मध्य और तार सप्तक में किया जाता है। यह गंभीर प्रकृति का राग है। इसमें भक्ति और श्रंगार रस की अनुभूति होती है। यह स्वर संगतियाँ राग जौनपुरी का रूप दर्शाती हैं -


सा ,नि१ ,नि१ सा ; रे रे सा ; रे रे म म प ; प प ; प ध१ ध१ प ; ध१ प ध१ म प ; रे रे म म प ; म प नि१ ध१ प ; म प ध१ नि१ सा' ; रे म प ध१ म प सा'; सा' रे' रे' सा' ; रे' रे' नि१ नि१ सा' ; रे नि१ सा रे नि१ ध१ प ; ध१ म प ग१ रे सा रे म प ; ध१ म प सा' ;

प्रा. विशाल कोरडे मार्गदर्शन